Devendra Fadnavis News: महाराष्ट्र में पहली से 5वीं क्लास तक हिंदी भाषा को अनिवार्य करने के फैसले से शिक्षा जगत, भाषाविदों से लेकर राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की इस पर प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. इस मुद्दे ने न सिर्फ भाषिक अस्मिता का सवाल खड़ा किया, बल्कि मराठी बनाम हिंदी के बहस को भी फिर एक बार केंद्र में ला खड़ा किया. इस मसले को लेकर बढ़ते विरोध के बाद राज्य सरकार ने अहम जानकारी दी है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हिंदी के स्थान पर अन्य भाषाओं को चुनने की छूट देने की बात कही है.
महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा, ”सबसे पहले यह समझ लेना चाहिए कि मराठी के स्थान पर हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया गया है. मराठी अनिवार्य है, लेकिन नई शिक्षा नीति में तीन भाषाएं सीखने के अवसर प्रदान किए गए हैं. एक भाषा सीखना अनिवार्य है और इन तीन भाषाओं में से दो भारतीय होनी चाहिए. इसलिए इस नियम के कारण हमने मराठी को अनिवार्य कर दिया है. आप कोई अन्य भाषा नहीं ले सकते, चाहे वह हिंदी हो, तमिल हो, मलयालम हो या गुजराती हो.”
हिंदी के शिक्षक हमें उपलब्ध हैं- फडणवीस
उन्होंने आगे कहा, ”इसमें जब मंत्री जी की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट दी तो उसमें तीसरी भाषा हिंदी है तो उसके शिक्षक हमें उपलब्ध हैं. इसलिए हमें अधिक शिक्षकों की आवश्यकता नहीं होगी. अगर अन्य भाषाएं रखी जाएं तो उसके शिक्षक उपलब्ध नहीं होते और इसलिए भाषा पर अतिक्रमण नहीं होता. यह उस समिति की सिफारिश है. हम इस संबंध में निर्णय लेने जा रहे हैं कि अगर कोई व्यक्ति हिंदी के अलावा कोई तीसरी भाषा सीखना चाहता है तो हम उसे पूरी तरह से अनुमति देंगे.
हिंदी थोपने की बात गलत- देवेंद्र फडणवीस
सीएम फडणवीस ने आगे कहा, ”नई शिक्षा नीति में इसकी अनुमति दी गई है, लेकिन अगर कम से कम 20 विद्यार्थी हैं तो उन्हें अलग से शिक्षक दिया जा सकेगा. अगर 20 वर्ष से कम विद्यार्थी हैं तो हमें उस भाषा को अलग तरीके से पढ़ाना होगा. विशेषकर हमारे सीमावर्ती क्षेत्रों में ऐसे शिक्षक अक्सर उपलब्ध रहते हैं. लेकिन यह कहना गलत है कि कहीं हिंदी थोपने की कोशिश हो रही है. महाराष्ट्र में मराठी अनिवार्य होगी, कोई अन्य अनिवार्यता नहीं होगी.”
राज्य भाषा सलाहकार समिति नाराज
राज्य भाषा सलाहकार समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख का कहना है कि यह निर्णय बच्चों की मानसिकता और राज्य की भाषिक वास्तविकता को दरकिनार करते हुए लिया गया है. उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार कक्षा 5वीं तक सिर्फ दो भाषाओं की पढ़ाई का प्रावधान है. बावजूद इसके, महाराष्ट्र की एससीआरटी और संचालन समिति ने हिंदी को अनिवार्य किया. वह भी बिना किसी ठोस कारण बताए. यह बेहद चिंताजनक है.
देशमुख ने आगे कहा, “महाराष्ट्र की पहचान उसकी मराठी भाषा और संस्कृति है. इस तरह का निर्णय न केवल असंवेदनशील है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों पर आघात भी है. इसे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जा सकता.”
क्या है नई शिक्षा नीति?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के अनुसार, देशभर में ‘त्रिभाषा सूत्र’ लागू करने की सिफारिश की गई थी. एक मातृभाषा, एक क्षेत्रीय या राज्य भाषा, और एक अन्य भारतीय भाषा. इसी नीति के तहत महाराष्ट्र में पहली कक्षा से हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की अनुशंसा की गई थी. शिक्षा नीति निर्धारण करनेवाली समिति ने कहा कि हिंदी शिक्षकों की उपलब्धता ज्यादा है, जबकि अन्य भाषाओं के शिक्षकों की भारी कमी है इसलिए हिंदी को वरीयता दी गई.
राज ठाकरे का विरोध
राज ठाकरे (मनसे) ने इस निर्णय का विरोध करते हुए इसे ‘सांस्कृतिक अतिक्रमण’ की संज्ञा दी. उन्होंने सवाल उठाया कि जब महाराष्ट्र में मराठी भाषा खुद संकट में है, तब हिंदी थोपना राज्य की अस्मिता पर चोट है. उद्धव ठाकरे ने भी अपना मत रखते हुए कहा, “हिंदी सीखने में कोई आपत्ति नहीं है, पर जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए.”